सूरज की रौशनी में पत्तियाँ जाग उठी हैं
उनके जीवन में एक नया दिन, एक नई शुरुवात,
हवा भी अपना जादू चला रही है
पत्तियाँ इसी खुशी में दोल रही है शायद
मेरे चेहरे पर एक मुस्कान की कमी है
सूरज और हवा वो खिला नही पाती
झरोके से देखूं तो सब कुछ हरा भरा है
दिल में झाँकू तो एक वीरानगी सी चाई है
मेहफ़िल है मेरे चारों ओर,
कितने लोग, कितनी हसी,
आईना देखूं तो मेरे चेहरे पर हसी है,
लेकिन क्या येह मेरा चेहरा है?
पेहचन नही पाती मैं अपनी तस्वीर को
कभी कबार पेहचान लेती हूँ अपनी परछाई को
इस नई सुबह मैं खोजने निकली हूँ इसी दुआ से,
के किसी मोड़ पर मेरी मुलाकात हो जाए, मुझसे,
इस बार आफताब और हवा मेरी मदद करदे शायद।
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