आधी ज़िन्दगी कट गयी
ज़िन्दगी बनाते हुए
अब पलटकर देखती हूँ
तो सूना आसमान दिखाई दे
रेत पर बनाया होगा शायद
शायद बनाया ही नहीं
गुज़रे हुए कल पे क्या रोना
वोह कल फिर आया नहीं
आगे की ज़िन्दगी बनाने चली
पर कुछ कम दिखाई दे रही है
अँधेरे से भरी राह है सामने
मंजिल भी अपना रास्ता ढूंढ चुकी
अकेली सी एक राह है शायद
शायद तन्हाई साथ है
यह सूरज डूब रहा है
फिर जाने उगेगा या नहीं !!
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